डॉ. संध्या पुजारी ( विभागाध्यक्ष )
आप सभी को नमस्कार,
शिक्षा के विषय में सभी मुर्धन्य विचारक एकयत से बताते है कि इसकी पूर्णता एवं समग्रता तब ही है जब यह तीन लक्ष्यों को पूरा करें-
1. स्वालंबन
2. व्यक्तित्व निर्माण
3. समाजिक सद्भावना का विकास
हमारे ऋषियों ने सार्थक एवं सर्वाग पूर्ण शिक्षा की बात कहते हुए शिक्षा एवं विद्या के समन्वय से ही व्यक्तित्व में विकास की प्रक्रिया सम्पन्न होते बताई है। विद्यार्थी के अंदर का यह भाव उसे भविष्य का जिम्मेदार नागरिक भी बनाता है जीवन के इस पड़ावप र जो भी सीखता है समझता है अथवा जिन नैतिक गुणों को अपनाता है वही उसके व्यक्तित्व वह चरित्रनिर्माण के प्रमुख भूमिका निभाते है और आत्म-विश्वास से चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता विकसित होती है और अपना स्वरूप भी बदल जाता है।
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सांदीपनी एकेडमी सुरक्षित एवं सृजनात्मक क्यारी के मध्य खिला हुआ एक ऐसा फुलों का गुलदस्ता है जो अपनी महक को पूरे संसार को महकाने के लिए उत्सुक है। इसकी आवश्यकता और शाश्वत उपयोगिता के संबंध मे एक मनिषी का कथन है कि "शिक्षा जीवन का शाश्वत मूल्य है।"
शिक्षा मनुष्य के विकास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य को प्रकृति से अन्य प्राणियों से अलग स्वतंत्रता प्रदान की है विकास करना है और शिक्षा विद्यार्थियों के
। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों का बहुमुखी संपूर्ण व्यक्तित्व को विकसित करती है। शिक्षा का महत्व स्वीकार करने के साथ-साथ यह भी मानकर चलना चाहिए कि उसका मूलभूत उद्देश्य चिंतन, चरित्र, व्यवहार एवं लोक परिचय के संबंध के संबंध मे उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त है। इसी आधार पर छात्र सुविज्ञ समुन्नत एवं सुसंस्कृत बनता है।
वर्तमान समय में संस्था पर सभी विद्यार्थियों को विश्वास है कि हमारे शिक्षकगण ही एक सुदृढ़ और विकासशील देश कि मजबुत नींव है । महाविद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के सर्वागीण विकास हेतु अनेक गतिविधियाँ वर्ष प्रयत्न चलती रहती है, मुझे विश्वास है कि हमारे विद्यार्थी आगे चलकर प्रबुर्ध, देशभक्त एवं विविध कौशलों से परिपूर्ण सभ्य नागरिक बनेंगे एवं समाज और देश के विकास में अपना यथा संभव सक्रिय योगदान देकर अपने मानव जीवन को सफल बनायेंगे।